Premchand — Sadgati | मुंशी प्रेमचंद — सदगति | Story | Hindi Kahani
दुखी चमार द्वार पर झाड़ू लगा रहा था और उसकी पत्नी झुरिया घर को गोबर से लीप रही थी। दोनों अपने-अपने काम से फुरसत पा चुके तो चमारिन ने कहा,‘‘तो जाके पंडित बाबा से कह आओ न ! ऐसा न हो, कहीं चले जाएँ।’’
दुखी — ‘‘हाँ जाता हूँ; लेकिन यह तो सोच, बैठेंगे किस चीज पर ?’’
झुरिया — ‘‘कहीं से खटिया न मिल जायेगी ? ठकुराने से माँग लाना।’’
दुखी — ‘‘तू तो कभी-कभी ऐसी बात कह देती है कि देह जल जाती है। ठकुराने वाले मुझे खटिया देंगे ! आग तक तो घर से निकलती नहीं, खटिया देंगे ! कैथाने में जाकर एक लोटा पानी माँगूँ तो न मिले। भला, खटिया कौन देगा ! हमारे उपले, सेंठे, भूसा, लकड़ी थोड़े ही हैं कि जो चाहें उठा ले जाएँ। ला, अपनी खटोली धोकर रख दें। गर्मी के दिन तो हैं। उनके आते-आते सूख जाएगी।’’
Read Full Story: https://hindikala.com/hindi-literature/hindi-story/premchand-hindi-story-sadgati/